अटल टनल रोहतांग के लोकार्पण से नजातीय आबादी बर्फ की कैद से मुक्त, दशकों से संजोया सपना हो गया साकार

अटल टनल रोहतांग के लोकार्पण से नजातीय आबादी बर्फ की कैद से मुक्त, दशकों से संजोया सपना हो गया साकार

केलांग (लाहौल-स्पीति)
अटल टनल रोहतांग के लोकार्पण के साथ ही देश के इस हिस्से में रहने वाली जनजातीय आबादी हमेशा के लिए बर्फ की कैद से मुक्त हो गई है। बर्फबारी के कारण साल में छह महीने तक दुनिया की हलचल से कटी रहने वाली लाहौल घाटी अब साल भर शेष देश से जुड़ी रह पाएगी। बर्फीले रोहतांग दर्रे की क्रूर चुनौतियों में पूरी जिंदगी जूझने वाले घाटी के कई बुजुर्गों की आंखें उस पल नम हो गईं, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिमोट का बटन दबा कर अटल टनल रोहतांग का लोकार्पण किया।

बुजुर्ग मानते हैं कि सामरिक लिहाज के बाद लाहौल-स्पीति समेत चंबा के पांगी-किलाड़ की जनजातीय आबादी को अटल टनल का सबसे अधिक फायदा होगा। बुजुर्गों ने कहा – हम खुशकिस्मत यात्री बने, जिन्होंने अटल टनल होकर सबसे पहले बस से सफर किया। दशकों से संजोया सपना आज साकार हो गया है।
अब रोहतांग की क्रूर प्रकृति से नहीं जूझना पड़ेगा
82 वर्षीय टशी फुंचोग ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में कई बार रोहतांग दर्रा होकर मनाली से घर तक करीब 135 किमी बर्फ में पैदल सफर किया है। फुंचोग के मुताबिक रोजगार के लिए घाटी के कई लोग कुल्लू-मनाली की तरफ पलायन करते थे। मनाली से नमक, तेल और कुछ खाद्यान्न पीठ पर उठाकर पैदल दर्रा पार करते हुए दो दिन बाद घर पहुंचते थे। लेकिन अब टनल खुलने के बाद भावी पीढ़ी को अपने बुजुर्गों की तरह रोहतांग की क्रूर प्रकृति से जूझना नहीं पड़ेगा।

अटल टनल का बनना किसी सपने से कम नहीं
75 वर्षीय तंजिन दोरजे ने कहा कि रोहतांग दर्रा की चुनौतियों ने घाटी को हर लिहाज से पिछड़ा रखा। रोहतांग दर्रा पैदल पार करते समय एक बार उनके कई साथी बर्फीले बवंडर में फंस गए। एक वक्त ऐसा लगा कि अब उनका बचना संभव नहीं है। लेकिन इसी बीच मौसम ने अचानक करवट बदली और वह साथियों को खोजने में कामयाब हुए। उन्होंने कहा कि हम जैसे उम्रदराज लोगों के लिए अटल टनल का बनना किसी सपने से कम नहीं है।

10 मिनट में लाहौल से कुल्लू की सरहद में पहुंच गए
80 वर्षीय प्रेमलाल ने कहा कि उस दौर में लाहौल से कुल्लू-मनाली जाना किसी विदेश दौरे से कम नहीं होता था। एक बार रोजगार के लिए घर से निकले तो साल बाद घर वापसी होती थी। रोहतांग दर्रा को पैदल पार करना इतना आसान नहीं था। साल में एक बार ही दर्रा पार कर पाते थे। टनल खुलने के बाद शनिवार को हम महज 10 मिनट के भीतर लाहौल से कुल्लू की सरहद में प्रवेश कर गए। यह किसी सपने के साकार होने से कम नहीं है।

भावुक हो गए रामलाल, दोरजे को दिख रहा बच्चों का बेहतर भविष्य
75 साल के रामलाल अपने जीवन के उस दौर को याद कर भावुक हो उठे जब कुल्लू जाने के लिए कई बार घर से 100 किमी से अधिक की दूरी बर्फ के बीच पैदल चले। रोजमर्रा की चीजों को खरीदकर पीठ में लाद कर रोहतांग दर्रा पार करना मौत के मुंह से निकलने जैसा होता था। पैदल सफर के दौरान रोहतांग की क्रूर प्रकृति कई लोगों की जिंदगी लील चुकी है। सफर के दौरान कई बार भूखे पेट ही बीच रास्ते में रात गुजारनी पड़ती थी। 81 साल के दोरजे राम का कहना है कि अटल टनल खुलने से भावी पीढ़ी अब देश की मुख्यधारा से जुड़ कर अपनी बेहतर भविष्य पटकथा लिख सकेगी।

 

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